प्रथम नवरात्रि
माता शैलपुत्री का स्वरूप
माता शैलपुत्री, दुर्गा के नौ रूपों में से पहले रूप के रूप में जानी जाती हैं। उनका स्वरूप अद्भुत और दिव्य है। वे एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल धारण करती हैं। उनका वाहन एक शेर है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। माता का यह स्वरूप दर्शाता है कि वे सभी जीवों को संरक्षण देने वाली और कठिनाइयों का सामना करने वाली हैं। शैलपुत्री का नाम ‘शैल’ (पर्वत) से लिया गया है, जो उनके जन्म स्थान को दर्शाता है।
माता शैलपुत्री का जन्म
कथानुसार, माता शैलपुत्री का जन्म हिमालय के पर्वतों पर हुआ था। वे हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती की पुत्री हैं। जब माता सती ने भगवान शिव से विवाह किया, तब उनके पिता दक्ष प्रजापति ने इस विवाह का अपमान किया। सती ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली, जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें पुनः प्राप्त करने के लिए हिमालय में कठोर तप किया। तब देवी शैलपुत्री ने उन्हें प्रसन्न होकर पुनर्जन्म लिया। इस प्रकार, माता शैलपुत्री का स्वरूप हमें यह सिखाता है कि शक्ति और भक्ति के साथ कठिनाइयों का सामना किया जा सकता है।
पूजा सामग्री
माता शैलपुत्री की पूजा के लिए कुछ विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है:
- कलश: मिट्टी या धातु का कलश, जिसमें जल और जौ के अंकुर भरे जाते हैं।
- फूल: खासकर सफेद फूल, जैसे चमेली या मोगरा।
- फल: नारियल, सेब, और अन्य ताजे फल।
- मिठाई: विशेषकर बेसन के लड्डू या अन्य स्वादिष्ट व्यंजन।
- दीपक: तेल का दीपक या बत्ती।
- कपूर: आरती के समय जलाने के लिए।
- माता का चित्र या मूर्ति: पूजा के लिए देवी का चित्र या मूर्ति आवश्यक है।
पूजा विधि
माता शैलपुत्री की पूजा विधि सरल और मनमोहक है। निम्नलिखित चरणों का पालन करके भक्त माता की आराधना कर सकते हैं:
- स्नान: पूजा से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनना चाहिए। यह आत्मा की शुद्धता का प्रतीक है।
- पूजा स्थल की सजावट: एक स्वच्छ स्थान पर देवी का चित्र या मूर्ति स्थापित करें। चारों ओर फूलों की माला और रंगीन कपड़ा बिछाएं।
- कलश स्थापना: कलश में जल भरकर उसे पूजा स्थल पर रखें। कलश के ऊपर आम के पत्ते रखें और उसके चारों ओर जौ के अंकुर रखें।
- आरती और मंत्र: माता शैलपुत्री के नाम की आरती करें और ‘ॐ शैलपुत्र्यै नमः’ जैसे मंत्र का जाप करें। इससे ध्यान और भक्ति की वृद्धि होती है।
- भोग अर्पित करना: माता को फल, मिठाई और फूलों का भोग अर्पित करें। यह भोग भक्त की श्रद्धा को दर्शाता है।
- प्रार्थना: अंत में, श्रद्धा और भक्ति के साथ माता से स्वास्थ्य, समृद्धि और शक्ति की प्रार्थना करें।
माता शैलपुत्री की पूजा से मानसिक शांति और शक्ति की अनुभूति होती है। इस दिन भक्तगण उपवास रखते हैं और माता की आराधना में लीन रहते हैं।